रविवार, 26 जुलाई 2020

छत्तीसगढ़ राज्य

छत्तीसगढ़ राज्य बने 19 साल हो रहा है। हम लोग अपनी भाषा के लिये लड़ रहे हैं। हर राज्य की भाषा है। छत्तीसगढ़ी की भी अपनी भाषा छत्तीसगढ़ी है। यह भाषा कभी भी काम काज की भाषा और न पढ़ाई की भाषा बन सकी। यहां के लोग अपने तीज त्यौहार की छुट्टी के लिये भी सरकार के पास अपनी मांग रखत रहे। जिस भाषा का व्याकरण 1885 में ही हीरालालकाव्योपाध्याय ने तैयार कर लिया था, जो 1890 में छप चुकी थी उस भाषा को बोली का दर्जा दिया गया। पढ़ाई के नाम पर हिंदी के साथ चार पाठ रख दिया गया है जिसे भी कई स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता है। तीजा हरेली की छुट्टी की मांग कई साल से चल रही थी। पंद्रह साल से जो सरकार काम कर रही थी उसने छत्तीसगढ़ में बहुत विकास का काम किया। इतने विकास के सामने भाषा और संस्कृति दबती चली गई।

सरकार नई आ गई , उसने पहले के कामों की समीक्षा करके आगे का नया रास्ता बनाया। उन्होने गांव जानवर और खेत किसान के बारे में सोचा। महिलायें अपनी मांग को लेकर गईं। एक किसान का बेटा इस बात को सोच कर मांग पूरी कर दिया कि हरेली तो हमारे छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा त्यौहार है। पूरे भारत में तीजा का जितना कठिन उपवास छत्तीसगढ़ की महिलायें करती हैं वैसा कहीं भी नहीं होता है। यह मायके जाने से आने तक का तीन दिन का त्यौहार है। यह तो हमारी आदिसंस्कृति है। छत्तीसगढ़ की धरती में शिव और शाक्त की ही पूजा होती है। हर क्षेत्र मे अलग अलग नाम से शिवजी पूजे जाते है। शक्तिस्वरुपा मां कुल देवी से लेकर महामाया, बम्लेश्वरी, चंडी तक के रुपों में पूजी की जाती है।

एक किसान ने इस बात को समझ कर हरेली पोला और तीजा की छुट्टी घोषित कर दी। सभी के मन में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। क्रांतिसेना भिलाई में जबर हरेली का आयोजन करके हमारी पूरी संस्कृति को प्रदर्शित करता है। डंडा नाच ,गेड़ी नाच, पंथी ,सुआ, राऊत नाच ,बैलगाड़ी के साथ छत्तीसगढ़ी वेशभूषा देखने को मिलती है।

इस साल हरेली की छुट्टी की घोषणा के साथ स्कूलों में खेलकूद के आयोजन का आदेश निकाला गया। सच मे मेरा मन नाच उठा। आज तो "नांदिया बैल" ही नहीं दिखता है। गेड़ी को तो शहर के लोग देखे ही नहीं है।
इस साल तो बहु ही अच्छा लगा। हर स्कूल में छत्तीसगढ़ी खेल कूद हुआ, गोटा, बिल्लस, फुगड़ी, रस्सी दौड़, खो खो, बच्चों ने गेड़ी का आनंद लिया। खाने के लिये ठेठरी खुरमी, बोबरा, गुलगुला, चीला रखा गया। सबसे अच्छी बात यह रही की मुख्यमंत्री निवास पर सभी तरह के आयोजन हुये। मुख्यमंत्री ने गेड़ी में बहुत दौड़ लगाई। भौरा चलाया, चलाते हुये अपने हाथ में रख लिया और चलाया। वहां पर राऊत नाचा हुआ ,गेड़ी नाच हुआ, डंडा नाच हुआ। बैल गाड़ी भी चलाये। मुख्यमंत्री निवास छोटा छत्तीसगढ़ दिख रहा था। इतने धूमधाम से हरेली मनाई गई की मैं तो इस साल पीछे ही चली गई। जब हर जगह गेड़ी तो दिख ही जाती थी। गांव में लोग अपने खेती के औजारों को धोकर पूजा किये और बोबरा चीला का भोग लगाये। हरेली के दिन खेती के बोनी बियासी का काम समाप्त हो जाता है और औजारों को धोकर रख देते हैं। आज से ही बैलों को आराम दिया जाता है। दो माह की कड़ी मेहनत के बाद जानवर फसल कटाई तक आराम करेंगे। इस साल के आयोजन को देखकर बाहर से आये लोगों को पता चला कि छत्तीसगढ़ की हरेली कैसी होती है?
मेरा मन तो सच में खुशी से नाच उठा, हरेली ऐसी है तो पोला और तीजा में कितनी रौनक रहेगी।

मां

आज शिक्षक दिवस है।
माँ मैं तुम्हे कैसे भूल सकती हूं। तुम ही तो मेरी प्रथम गुरु हो। अपनी तालियों से मुझे हंसना सिखाया, अपने आंचल की छांव में मुझे प्यार करना सिखाया। ऊंगली पकड़ कर चलना सिखाया। अपने हाथों के सहारे मुझे खाना सिखाया। चलते हुये जब गिर जाती थी तो हंस कर पत्थर टूटने की बात कहती थी तो मैं मुस्कुरा उठती थी। जब भी चलते हुये लड़खड़ाती तो मुझे प्यार से सहला कर सीधे खड़े कर देती थी। जीवन के उतार चढ़ाव में भी मैने खड़े होना सीख लिया। कितने प्यार से मिट्टी के आंगन में पानी से लिख कर अक्षरों का ज्ञान कराया। मां तुम मुझे चौके में खाना बनाते हुये भी लिखना सिखाती थी। अगहन के महिनें में हर बुधवार की रात को आंगन में चौक बनाया करती थी। हर लाइन का मतलब बताया करती थी। कैसे लाइनों की तरह मुड़ना चाहिये ,झुकना चाहिये यह भी बताया करती थी।
गेंदे के फूलों को गुंथते हुये हमेशा एकता की ताकत को समझाया करती थी। कितनें बच्चों को रख कर पढ़ा रही थीं तो हर दिन एक ही बात कहती थीं, सबसे समान व्यवहार करना चाहिये। यह बात तुमने अपने परिवार में करके बताया था। मां तुमने मुझे एक ईश्वर की बात बताई। जातपात के भेद से ऊपर काका ने भी सभी मानव में भगवान होते हैं बताया। घर में काका रोज गीता का पाठ करते थे तो उन्होने भी एक बात सीखाई कि कर्मो का फल मिलता है इस कारण कर्म अच्छे करो,फल की चिंता मत करो। काका बी एड कालेज में प्रोफेसर थे। काका ने मुझे मंच पर वादविवाद के लिये तैयार किया तो मां ने हमेशा विषयों पर अपने भी विचार रखे। स्कूल में मिली किताबी शिक्षा को व्यवाहरिक कैसे बनाना यह मैने अपने मां काका से सीखा। चौथी पास मां जब विज्ञान के विषयों पर सवाल करती तो मुझे और गहराई से पढ़ना पड़ता था। मां ने मुझे अंधविश्वास के दायरे से बाहर रखा। मेरी विज्ञान की पढ़ाई से मां ने अंधविश्वास के दायरे को तोड़ दिया। काम कभी भी छोटा बड़ा नहीं होता काका ने सीखाया तो मां ने हर काम को करने की प्रेरणा दी। हाथ से कढ़ाई ,बुनाई, सिलाई, और पाककला के साथ साथ गोबर के कंडे बनाना और मिट्टी के चुल्हे बनाना भी सिखाया। शहर में रहते हुये गोबर से आंगन कैसे लीपा जाता है यह सब बहुत अच्छे से मैं सीख गई।
मां तुम्हारी ममता और प्यार के इस सीमा को तब समझी जब मैं स्वयं मां बनी। मैनें भी अपने बेटे के लिये उसी तरह की गुरु मां बनने का प्रयास जरुर की हूं। कुछ और भी याद आ रहा है मां तुम्हारी वह डांट , हां जब भी स्कूल कालेज से आने में देर हो जाती थी तो भगवान के सामने एक नारियल रख कर प्रार्थना करतीं और बैठक के दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी। मेरे आने पर गुस्सा दिखातीं और बात नहीं करती थीं। मैं स्वयं सफाई देते रहती ,चाय पीती पर मां नारियल फोड़ने के बाद खाना खाते समय ही बात करती थी। यह बात तो बहुत साधारण लगती है पर वह चिंता थी कि बेटी पैदल आती जाती है, ब्राम्हण पारा जैसे गुंडो के गढ़ को पार करती है, पता नहीं क्या हो जाये। उस समय यह ब्राम्हणपारा चौक लड़कों का अड्डा हुआ करता था और सत्ती बाजार में दो दादा हुआ करते थे। बैजनाथ पारा में भी कुछ लोग थे।ये तीनों जगह के दादा के बीच आये दिन झगड़ा होता था और चाकूबाजी भी हो जाती थी। वह दौर रहा 1966--1979 के बीच, तब बहुत हड़ताल ,लड़ाई झगड़े हुइ करते थे। मां उस समय भी अपने साहस का परिचय देकर हम लोंगों को साहस देती थी।
एक ही.वाक्य रहता था " अपने रास्ते जाना और अपने रास्ते आना" सिर झुका कर चलना। यह सीख जीवन में बहुत काम आई। सच है हमें किसी से क्यों उलझना चाहिये? दूसरे के मामले में क्यों बोलें। अपने काम से काम रखे।
मां तुम्हारे दी नैतिकता की सीख और काका के दिये जीवन मूल्य ही आज मेरी धरोहर है। शिक्षक तो हमारे अक्षर ज्ञान से लिखे साहित्य को समझाते हैं पर मां तो हमें जीवन जीना सिखाती है। हममें संस्कार डालती है। संस्कार स्कूल की शिक्षा नहीं डालती है। शिक्षा हमें क्या करना चाहिये बताती है तो मां उन सबको करके बताती हैं।

माँ के लिये एक दिन

आज मुझे मेरी मां की बहुत याद आ रही है। 17 सितम्बर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन था। वे बहुत सा काम निपटा कर अपनी माँ से मिलने जाते है। सबसे पहले नर्मदा की पूजा किये उसके बाद माँ से मिलने गये। माँ के साथ खाना खाये। खाने में तुअर दाल, पूरन पुड़ी, देशी चना ,आलू भिंडी की सब्जी के खाना खाये।सादा भोजन और माँ क साथ बहुत कम लोगों को नसीब होता है। परिवार के कोई और लोग सामने नहीं आये। माँ सादगी से मिली और खाकर साथ बैठ कर बेटे के मुंह पोछी। एक मां के लिये बेटा तो बेटा होता है चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। मां ने पांच सौ रुपये दिये। पहले एक सौ एक देती थी। मोदी जी बहुत प्यार से पैसा लेकर जेब में रख लेते हैं। यही तो वह आशिर्वाद है जो हमेंशा साथ में रहेगा।

मां बेटे जब मिलते हैं तो दोनों के आँखो भाव पढ़ना चाहिये।माँ की ममता उसके हर अंग से दिखाई दे रही थी। मोदी जी कैसे निश्चिंत अपनी माँ के साथ बैठे थे। माँ कुछ बोल रही थी और वह सुन रहे थे। बीच में अपने रूमाल से बेटे का मुंह भी पोछती थी। मोदी जी छोटे बच्चे की तरह बैठे रहते हैं। मोदी जी के आँखो में माँ के प्रति प्रेम दिखाई देता है। मोदी जी सुरक्षा गार्ड से ज्यादा अपनी मां के पास अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे थे। सही है माँ के आँचल से ज्यादा सुरक्षित कोई और जगह नहीं है। हर वर्ष मिडिया उनकी फोटो दिखाती है पर मिडिया घर के अंदर नहीं जाती और उनके परिवार के लोगों को नहीं दिखाती। कोई और होता तो अपने परिवार घर सबकों दिखाता।

पूरे देश को चलाने वाला प्रधानमंत्री जो किसी का बेटा भी है, अपनी मां को जन्मदिन पर नहीं भूलता है। माँ से आशीर्वाद लेने जाता है। उसे अपने काम से ज्यादा माँ से मिलना जरुरी लगता है। आज हम अपनी माँ को काम के बाद रखते हैं।

आज हम इतने व्यस्त हो गये हैं कि चालीस किलोमीटर की दूरी भी पार करके माँ का आशीर्वाद लेने नहीं जा सकते है।शहर में एक ही घर में भी माँ के पास एक घंटा नहीं बैठ सकते हैं। आज बचपन और माँ याद आ रही है। पहले न तो केक काटते थे और न पार्टी होती थी। माँ बढ़िया खीर बनाती थी और सब लोग बैठ कर खीर पूड़ी खाते थे। कभी गिफ्ट नहीं मिला और सिर्फ प्यार मिला। उस एक दिन की खुशियां साल भर प्रेरणा देती थी। आज तो जन्मदिन तीज त्योहार में पर छुने की प्रथा भी दम तोड़ रही है। हमारी युवा पीढ़ी अब अंग्रेजी संस्कृति की ओर बढ़ रही है ,केक काटती है और माँ बाप को पप्पी लेती है। वही आज हमारी तीसरी पीढ़ी भी वही कर रही है। आज हमें इन बड़े और सादगी पूर्ण लोगों से कुछ सीखना चाहिये। यादों के पन्ने खुलते जाते हैं जब ऐसी कोई घटना होती है।

चंद्रयान

आज मुझे अपनी डायरी के पुराने पन्ने याद आ रहे हैं। बचपन की कुछ यादें ताजा हो रही हैं। आज भारत का चंद्रयान चांद पर उतरने वाला था। यान जब चांद से सिर्फ 2.1 किलोमीटर दूर था तभी उसका संम्पर्क टूट गया। वह नौ सेकंड के बाद ही उतरने वाला था। यह पूरी तरह से स्वदेशी यान था। इस यान ने पुष्पक विमान की याद दिला दी। हमारी पौराणिक कथाओं में ग्रहों का मानवीकरण है। ये लोग एक ग्रह से दूसरे ग्रह में विचरण करते थे। 47 दिन पहले बहुत ही अरमानों के साथ चंद्रयान -2 भारत से भेजा गया था। यह उस स्थान पर उतरने वाला था जहां अंधेरा रहता है। रोशनी बहुत कम समय के लिये आती है और तापमान माइनस में रहता है। पानी की खोज के लिये गया यान ने हमारा साथ छोड़ दिया। " विक्रम "नाम का यान " प्रज्ञान "नाम की छोटी गाड़ी को छोड़ता और इससे ही पता चलता वहां की मिट्टी ,भूकंप, चट्टानों बारे में। "विक्रम" लैंडर है और "प्रज्ञान" रोवर है।
अंतिम "दहशत के वो पंद्रह मिनट " " 15 मिनट ऑफ टैरर" सभी टी वी के सामने बैठे थे। आज भारत जाग रहा था। पहले चरण में विक्रम तीस किलोमीटर से 7.4 किलोमीटर पर आया। दूसरे चरण में 7.5 से 5 किलोमीटर तक उतरा, तीसरे चरण में 5 किलोमीटर से नीचे उतरते समय सम्पर्क टूट गया। एक बज कर तिरपन मिनट पर उतरने वाला विक्रम एक बज कर इंकावन मिनट पर इसरो से सम्पर्क टूट गया। सभी दुखी थे।पर हमारे पी एम ,नरेंद्र मोदी जी ने् इसरो प्रमुख के सिवन को गले लगा कर बहुत अच्छी बात कही। "जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। यह कोई छोटी उपलब्धी नहीं है। देश आप पर गर्व करता है। आपकी इस मेहनत ने बहुत कुछ सीखाया है। अच्छे के लिये आशा करें। हर हार से हम बहुत कुछ सीख रहे हैं।मैं पूरी तरह आपके साथ हूं। हिम्मत के साथ चलें। आपके पुरुषार्थ से देश फिर से खुशी मनाने लग जायेगा।" यह मिशन सफल होता तो भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन जाता।
रात जागने वाला भारत उदास हो गया।
मुझे 20 जुलाई सन् 1969 का वह दिन याद आ गया जब अपोलो 11 ने चांद पर उतर कर एक रिकार्ड बनाया था। कई असफलता के बाद मानव सहित विमान भेजा गया। बहुत से प्रयोग बंदर और चिंपाजी पर किये गये थे। अंतरराष्ट्रीय समय 20.17.39 बजे चांद पर उतरा था। ये लोग वापस 24 जुलाई को प्रशांत महासागर में उतरे थे। सन् 1969 - 1972 तक छै अपोलो मिशन चांद पर गये उसमें से पांच ही सफल हुये थे। अपोलो 11 में तीन लोग गये थे। नील आर्मस्ट्रांग, कॉलिंस, ऐल्ड्रीन। इसमें से दो लोग नील आर्मस्ट्रांग और ऐल्ड्रीन ही चांद पर उतरे थे और 31 घंटे और 31 मिनट चांद पर रहे। हम लोग स्कूल में पढ़ रहे थे। चांद पर मानव के कदम रखने पर पूरे भारत में छुट्टी दे दी गई थी।
हम लोगों को सिनेमा घर ले जाकर उनको चांद पर चहलकदमी करते हुये दिखाये। मन बहुत खुश हो रहा था जिस चांद को हम देखते रहते हैं उस तक मानव पहुंच गया। उसके बाद चांद पर कोई नहीं गया। भारत का एक प्रयास था कि वहां की मिट्टी, हवा, पानी, भूकम्प का परिक्षण करें। पर चांद अपने को समेटे रखना चाहता था। वरना दो किलोमीटर पहले ही सम्बंध टूटना आश्चर्यजनक घटना है।जो यान 384400 किलोमीटर का रास्ता तय करके चांद की परिक्रमा करने लगी वह दो किलोमीटर पहले कैसे हमसे सम्बंध थोड़ सकती है?बहुत दुख हुआ बचपन में देखी गई नील आर्मस्ट्रांग की चहलकदमी याद आने लगी।

प्रेम और पुरुष

मैं एक दिन बैठ कर पुरानी डायरी देख रही थी जिसमें मुझे "प्रेम और पुरुष " पर लिखा कुछ मिल गया। आप भी पुरानी डायरी के पन्नों को पढ़िये।
" प्रेम एक अलौकिक वरदान है। प्रेम, ममता वातसल्य नारी के पास अपार रुप से होती है परन्तु पुरुष इससे दूर दिखाई देता है। दिखने में नारियल की तरह कठोर दिखने वाला पुरुष अंदर से कच्चे नारियल के भेले की तरह नरम और दिल नारियल के पानी की तरह स्वच्छ साफ मीठा होता है। एक पुरुष में प्रेम देखना हो तो उसके अंदर जाना पड़ता है। नारियल के टूटने से तरल पदार्थ याने मीठा जल बाहर आता हैऔर सबको तृप्त कर देता है।

एक पुरुष के प्रेम को पाने के लिये या देखने के लिये उसके सक्त परत को तोड़ने की जरुरत होती है। पुरुष अपने मुंह से बहुत सी बातें नहीं कहते हैं परन्तु उनकी आँखे कह देती हैं। शब्दों की जरुरत ही नहीं होती है। जब पत्नी दुखी हो तो कंधे पर रखा एक हाथ पत्नी में असीम उर्जा का संचार करता है। आफिस से लौटते समय एक मोंगरे की माला खरीद कर घर पहुंच कर पत्नि के हाथो पर उसे रखता है तो बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देता है। पत्नि शरमाते हुये जब वेणी लेती है तब उसकी झुक नजरें पति की कठोरता को ऐसे तोड़ कर रख देती है कि उसके दिल की निश्छलता मुस्कान से टपकने लगती है। एक पुरूष का निश्छल प्रेम

गोद में बैठी बिटिया जब गालों को छूती है तब वात्सल्य के रुप में प्रेम छलकता है तो बिटिया के गालों पर एक चुम्न अंकित कर देता है। ताली बजाती बिटिया को देख क कठोरता टूट जाती है और प्रेम की धारा बहने लगती है। यह प्रेम की धारा बिटिया की बिदाई पर आँसू बनके टपकने लगती है। पत्नि के विछोह पर भी आँसू गंगा जमना की तरह बहने लगती है परन्तु बाहर की कठोरता उसे जल्द.ही अपने घेरे में ले लेती है। पुरुष अपने प्रेम को हर छण प्रगट नहीं करता है। वह तो ईश्वर की अराधना में चढ़ते फल की तरह कभी कभी ही बाहर आती है। एक पुरुष के प्रेम का प्रशाद विशेष छणों में ही मिलता है। यह एक प्रकृति का दिया उपहार है।" यह पन्ना दो अप्रेल 2011 का है जिसे आज फिर लिखने की जरुरत है।

आज प्रेम की परिभाषा बदल रही है. यह अलौकिक वरदान अब अभिश्राप भी बनते जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी शारिरिक सम्बध बनाने के लिये इस पवित्र प्यार का नाटक करते है। यह नाटक और असल में फर्क समझने की भावना अब कमजोर हो रही है। असल और नकल के भेद को समझने की क्षमता को आज शोसल मिडिया के प्रेम ने समाप्त कर दिया है। समय रहेगा तभी तो हम प्रेम को समझेंगे। प्रेम क समझने और महसस करने के लिये पर्याप्त समय चाहिये, मशीनी जीवन नहीं।

बढ़ते कद का रावण

आज मैं शाम को घूमने निकली तो देखी की हमारे घर के पा बहुत बड़ा करीब अस्सी फीट का रावण खड़ा हो रहा है। पूरा बन चुका है पर उसे सजाने का काम चल रहा ह।कागज लपेटे जा रहे थे। मैं खड़े होकर उसे ध्यान से देख रही थी। मुझे लगा कि उसके आँसू टपक रहे हैं।मन से एक सवाल निकला-" कागज के रावण के आँखों में आँसू?"मन से मन की बात होने लगी विचारों के माध्यम से।

रावण ने कहा " हर वर्ष मेरा कद बढ़ाते जा रहे हैं, मेरा पुतला जगह जगह रख रहे हैं। उसे जलाने अब बड़े बड़े नेता आ रहे हैं। मेरा कद बढ़ रहा है तो मुझे मारने वाले का पद बढ़ रहा है। " हां यह सच है तो तुम्हे क्या तकलीफ है मैने कहा तो वह बोल उठा "बहुत तकलीफ है। सैकड़ो साल से मुझे जला रहे हों पर मैं तो बढ़ते ही जा रहा हूं। कभी जल कर मरा हूं या फिर मुझे तुम लोग भूले हो। मैने तो सीता को जब उठाया तभी छूआ था उसके बाद तो मैं सिर्फ बात ही किया हूं। कभी सीता को छुआ नहीं।" सही बोल रहे हो रावण, मैने कहा तो लगा जैसे मैने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है।

रावण ने फिर कहा " मुझे मारने.वाला राम तो हो? झूठ, रिश्वत में डूबा व्यक्ति मुझे मार रहा है। अमर्यादित व्यक्ति मुझे मार रहा है। कुछ वर्षो से तो दुराचारी व्यक्ति मुझे मारने आता है तब मैं रो उठता हूं। कलयुग में तो शायद ही कोई राम जैसा हो? रास्ते में चलते ,बस में चढ़ते या सिनेमा हॉल में या फिर मेले में करीब करीब हर पुरुष नारी को गलत नजर से देखता और छुता है। आज तो ब्राम्हण बन भागवत सुनाता रामायण सुनाता संत भी दुराचारी हो गया है। वह मुझे क्या मारेगा? आज बड़े पद में बैठा व्यक्ति और नेता भी बलात्कारी होगया है, क्या उसे हक है मुझे मारने का? पहले अपने आप को देख लें कि वे कितने पानी में हैं फिर मुझे मारें। मुझे र साल मार मार कर जिवित रखे हैं। मारना है तो दुराचारी को मारे बलात्कारी को मारे। इसे तो आज के समय में.सजा भी नहीं मिलती है, उसे क्यों नहीं जिंदा जला देते। मैं तो एक बार में ही मर गया था। आज किसे मार रहें है। रामलीला तो ठीक है। जिसमे रावण प्रतिकात्मक रुप से मर जाता है, उसे बार बार जलाना क्यों?"

रावण के आँसू झरझर झरझर बहने लगे। मै भी सोचने लगी आखिर यह रालणको मारने की प्रथा क्यों शुरु की गई। इसे रामलीला तक ही सीमित रखना था। बार बार रावण का कद बढ़ा कर बलात्कारी को भी बढ़ा रहे हैं।इन बलात्कारियों के पुतले क्यों नहीं? हर साल इन्ही के पुतलों को जलाया जाये। आज फिर से एक बार रामलीला की शुरुआत हो और रालण के पात्र को ही गिर कर मरते दिखाया जाये न कि इस तरह से रावण को मारा जाये।
हमारी कथाये राम ने रावण को मारा तक ही न हो। आज इस कथा को नहीं जानने वाले रावण को सोशल मिडिया में बलात्कारी भी लिख रहे है। आज हमारी जानकारी भी किस गंदी दिशा की ओर जा यही है। आज संजीवनी बूटी किसके लिये लेकर आये थे हनुमान उसका उत्तर नहीं दे पाते हैं। राम लोग कितने भाई है उसे नहीं बता पाते हैं पर यह जरुर जानते है कि रावण ने सीता का हरण किया तो राम ने रावण मार दिया। बस हमारी एख युग की कथा का समापन हो जाता है।
अब भी हम लोग सोच सकते है रावण को जलाये या फिर राम कथा का मंचन कर हर साल बलात्कारी को मारे या जलायें।
चलिये आज के लिये इतना ही काफी है, पुतले के आँसू ने कुछ तो चिंतन करने का विषय दिया।