छत्तीसगढ़ राज्य बने 19 साल हो रहा है। हम लोग अपनी भाषा के लिये लड़ रहे हैं। हर राज्य की भाषा है। छत्तीसगढ़ी की भी अपनी भाषा छत्तीसगढ़ी है। यह भाषा कभी भी काम काज की भाषा और न पढ़ाई की भाषा बन सकी। यहां के लोग अपने तीज त्यौहार की छुट्टी के लिये भी सरकार के पास अपनी मांग रखत रहे। जिस भाषा का व्याकरण 1885 में ही हीरालालकाव्योपाध्याय ने तैयार कर लिया था, जो 1890 में छप चुकी थी उस भाषा को बोली का दर्जा दिया गया। पढ़ाई के नाम पर हिंदी के साथ चार पाठ रख दिया गया है जिसे भी कई स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता है। तीजा हरेली की छुट्टी की मांग कई साल से चल रही थी। पंद्रह साल से जो सरकार काम कर रही थी उसने छत्तीसगढ़ में बहुत विकास का काम किया। इतने विकास के सामने भाषा और संस्कृति दबती चली गई।
सरकार नई आ गई , उसने पहले के कामों की समीक्षा करके आगे का नया रास्ता बनाया। उन्होने गांव जानवर और खेत किसान के बारे में सोचा। महिलायें अपनी मांग को लेकर गईं। एक किसान का बेटा इस बात को सोच कर मांग पूरी कर दिया कि हरेली तो हमारे छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा त्यौहार है। पूरे भारत में तीजा का जितना कठिन उपवास छत्तीसगढ़ की महिलायें करती हैं वैसा कहीं भी नहीं होता है। यह मायके जाने से आने तक का तीन दिन का त्यौहार है। यह तो हमारी आदिसंस्कृति है। छत्तीसगढ़ की धरती में शिव और शाक्त की ही पूजा होती है। हर क्षेत्र मे अलग अलग नाम से शिवजी पूजे जाते है। शक्तिस्वरुपा मां कुल देवी से लेकर महामाया, बम्लेश्वरी, चंडी तक के रुपों में पूजी की जाती है।
एक किसान ने इस बात को समझ कर हरेली पोला और तीजा की छुट्टी घोषित कर दी। सभी के मन में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। क्रांतिसेना भिलाई में जबर हरेली का आयोजन करके हमारी पूरी संस्कृति को प्रदर्शित करता है। डंडा नाच ,गेड़ी नाच, पंथी ,सुआ, राऊत नाच ,बैलगाड़ी के साथ छत्तीसगढ़ी वेशभूषा देखने को मिलती है।
इस साल हरेली की छुट्टी की घोषणा के साथ स्कूलों में खेलकूद के आयोजन का आदेश निकाला गया। सच मे मेरा मन नाच उठा। आज तो "नांदिया बैल" ही नहीं दिखता है। गेड़ी को तो शहर के लोग देखे ही नहीं है।
इस साल तो बहु ही अच्छा लगा। हर स्कूल में छत्तीसगढ़ी खेल कूद हुआ, गोटा, बिल्लस, फुगड़ी, रस्सी दौड़, खो खो, बच्चों ने गेड़ी का आनंद लिया। खाने के लिये ठेठरी खुरमी, बोबरा, गुलगुला, चीला रखा गया। सबसे अच्छी बात यह रही की मुख्यमंत्री निवास पर सभी तरह के आयोजन हुये। मुख्यमंत्री ने गेड़ी में बहुत दौड़ लगाई। भौरा चलाया, चलाते हुये अपने हाथ में रख लिया और चलाया। वहां पर राऊत नाचा हुआ ,गेड़ी नाच हुआ, डंडा नाच हुआ। बैल गाड़ी भी चलाये। मुख्यमंत्री निवास छोटा छत्तीसगढ़ दिख रहा था। इतने धूमधाम से हरेली मनाई गई की मैं तो इस साल पीछे ही चली गई। जब हर जगह गेड़ी तो दिख ही जाती थी। गांव में लोग अपने खेती के औजारों को धोकर पूजा किये और बोबरा चीला का भोग लगाये। हरेली के दिन खेती के बोनी बियासी का काम समाप्त हो जाता है और औजारों को धोकर रख देते हैं। आज से ही बैलों को आराम दिया जाता है। दो माह की कड़ी मेहनत के बाद जानवर फसल कटाई तक आराम करेंगे। इस साल के आयोजन को देखकर बाहर से आये लोगों को पता चला कि छत्तीसगढ़ की हरेली कैसी होती है?
मेरा मन तो सच में खुशी से नाच उठा, हरेली ऐसी है तो पोला और तीजा में कितनी रौनक रहेगी।