कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को लोग भूल जाते है ।वह कथाओं में ही सुनते है । यदि गीता सत्य है तो कृष्ण और सुदामा की दोस्ती भी सत्य है ।
आज मुझे एक दोस्ती और याद आ रही है जो मरते तक कायम रही ।मेरे पति के दोस्त फिरोज़ खान जिसे घर पर" भंगू"कहते थे ।इनकी दोस्ती सन 1962 से2004 तक रही ,मरते तक ।मेरे पति का परिवार राजातालाब में स्वयं के मकान में रहने गये ।सामने मुस्लिम परिवार था ।एक तरफ मस्जिद थी ।
मेरे पति और भंगू भैय्या हम उम्र थे ।दस ग्यारह साल की उमर की दोस्ती ने स्तर को नहीं देखा ।एक चकबंधी आफिसर का बेटा और एक ड्राइवर का बेटा ।एक दूसरे के घर खा लेते कोई फर्क नहीं पड़ता ।पर ये लोग रविवार को हमारे घर से पोहा खाकर निकलते तो शाम को ही लौटते थे ।
एक बार उनके घर एक चिट्ठी आई जो उर्दू में थी ।चिट्ठी लेकर मस्जिद गये ।मौलवी एक सप्ताह के लिये बाहर गये थे ।अब पूरा परिवार दुखी बैठा था ।मेरे पति को उनका दुख देखा नई गया ।वे पुरानी पुस्तक की दुकान गये और वहाँ से उर्दू सिखने की किताब लेकर आये ।चार दिन के अंदर इतना तो सीख गये कि चिट्ठी पढ़ सके ।उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर सुना दी ।उर्दू उन्होंने पढ़ना लिखना सीख लिया ।बहुत से लोगों की मदद भी हो गई अब तो कुरान भी पढ़ते और अपने दोस्त के साथ नमाज भी पढ़ते।तीन दिन का रोजा भी साथ में रखते थे ।
रविवार का दिन शादी के बाद भी दोस्त के लिये था ।मेरे लिये शनिवार का दिन था ।मेरे साथ शनिवार को फिल्म देखते और दोस्त के साथ रविवार को । हमारे घर का छोटा मोटा काम दोनों मिल कर कर लेते थे ।
दीपावली के दिन दोपहर का खाना हमारे घर खाते और शाम की पूजा भी करते।दीपक जलाने के बाद अपने घर जाते थे ।बेटा अपूर्व के साथ बहुत खेलते थे ।उसे सायकिल चलाना सिखाये ।
उन्हें कैंसर हो गया अब कम आते थे ।कुछ दिन अस्पताल में भर्ती भी रहे ।हम लोग कुछ पैसे भी दिये ।पैसा इनसे नहीं लिये ।मै भाभी को घर पर दे कर आई ।8 फरवरी 2004 को मेरे पति की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई सुबह ।सुबह से उनकी बेचैनी बढ़ गई ।अपने बेटे से उन्होंने कहा कि हमारे घर छोड़ दे पर उनकी हालत इतनी खराब थी कि वे आ नहीं सकते थे ।
चार बजे शाम को घर के बाहर निकले तो पैर हमारे घर की ओर ही बढ़ गये ।थकान बढ़ रही थी और मिलने की चाहत भी।ऐसा इत्तफाक मैंने जीवन में नहीं देखा।जैसा भैय्या ने बताया कि मेंन रोड से अंतिम यात्रा जा रही थी और वे शांतिनगर से मेंन रोड पर मिलने वाली सड़क परथे ।उन्होंने मेरे बेटे को पहचान लिया ।हाथ मे मटकी समझ नही पाये एक को रोक कर पूछा ।सत्य पता चलते ही वे एक व्यक्ति के साथ बैठ कर साथ चले गये ।
एक सप्ताह के बाद अपने बेटे के साथ मिलने आये ।दो तीन बार आये ।हमारा एक घर और था वहाँ का सामान लाये ।जहां रहते हैं उस मकान का ऊपर खाली करवाये ।सामान बहुत था मैने बेचा नहीं उन्हें दे दिया ।टीवी लेकर बहुत खुश हुये ।बोल कर गये मै मरने वाला था पर मेरा दोस्त पहले चला गया अब वही मुलाकात होगी। दो माह के बाद मुझे पता चला कि एक माह के बाद ही भंगू भैय्या गुजर गये ।
इस दोस्ती को आज तक लोग याद करते है ।मैं सोचती हूँ कि यह दोस्तीअमर है एक ड्राइवर और एक बैंक कर्मी । दोस्ती ने कभी जात, पद ,पैसा को नहीं देखा ।पैसा तो कहीं पर नहीं था ।वे लोग कभी नहीं लिये ।
मुझे सुदामा जरुर याद आते है ।आज फ्रेंडशीप डे मनाते है।एक धागे की दोस्ती बहुत दिनो तक नहीं रहती पर छत्तीसगढ़ की संस्कृति मे दोस्ती क्ई पीढ़ी तक रहती है और सगे से ज्यादा ।हमारे यहाँ नवरात्र में
जवांरा बोते है ।जब उसे ठंडा किया जाता है तब उस जवांरा को एक दूसरे के कान में खोंच कर जवारा बदते है ।तुलसीके पत्ते से तुलसी दल ,महाप्रसाद और एक नारियल देकर मितान बदते है ।यह अमर दोस्ती होती है कभी न टुटने वाली ।इस दोस्ती के लिये हर दिन खुला रहता है ।
राम ने इसी छत्तीसगढ़ की धरती पर वनवास के बारह साल बिताये थे। जंगलों में मितान बनाए थे जिन्होंने सीता को लाने में मदद की थी ।यहाँ की संस्कृति में मित्रता रची बसी है ।
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