रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 50


शादी के बाद दीदी का एम ए का रिजल्ट आया।दीदी ने पी एच डी करने का विचार बनाया और तैयारी शुरु कर दी ।जीजाजी रायपुर कृषि महाविद्यालय मे व्याख्याता थे ।प्रक्रिया होते होते उनका स्थानान्तरण रीवां हो गया ।काम शुरु होते तक एक बेटे विवेक का जन्म भी हो गया ।

विषय था "संत धर्मदास का व्यक्तित्व और कृतित्व " ।दीदी बार बार रायपुर आती और माँ के घर पर रहकर धर्मदास की जानकारी लेने के लिये कबीर पंथी मठों का भ्रमण करती थी । शोध हेतु भ्रमण की शुरुआत दामाखेड़ा से हुई ।बिहार उत्तरप्रदेश राजस्थान दिल्ली गुजरात और पश्चिम बंगाल के कबीर पंथी मठो में लगातार जाती रही ।उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी के कबीर पंथी मठ से अमूल्य पांडुलिपी प्राप्त कर आचार्य हजारी प्रशाद द्रिवेदी और डाक्टर रामकुमार वर्मा के सहयोग से कलकत्ता के नेशनल लायब्रेरी में एक माह तक अध्ययन करती रहीं । उनके गाइड डाक्टर बलदेव प्रशाद मिश्र एवं दामाखेड़ा के आचार्य गृंध्यमुनी नाम साहब से निरंतर परामर्श करती रहीं । बच्चे के लिये दीदी का मन निरंतर व्याकुल रहता था इस कारण दीदी विवेक को हमारे घर पर छोड़ कर गई थीं ।

विवेक तब एक साल का था ।दो चार दिन अपनी माँ को याद कर रोता रहा फिर खेल में लग गया ।मेरे स्कूल जाने के समय पर बहुत रोता था ।माँ तो खाना बनाने में व्यस्त रहती थी ।विवेक सुबह से मेरे पास रहता था ।सुबह दूध देना फिर उसे नहला कर तैयार करना यह मेरी जिम्मेदारी थी ।उसके रोने के कारण दो तीन दिन मै भी स्कूल नहीं गई पर कितने दिन नहीं जाती । एक दिन उसे माँ खाना खिला रही थी और मैं चुपचाप निकल कर स्कूल चली गई ।

शाम को जब मै स्कूल से आई तो देखी वह माँ के साथ बैठक के दरवाजे पर बैठा है और सिसक रहा है ।मुझे देखते ही खड़ा हो गया और मेरे से चिपक कर रोने लगा ।ऐसा लग रहा था जैसे सालों से बिछड़े थे ।उस दिन रात तक गोदी से नहीं उतरा ।रात को मेरे ही साथ सोता था , माँ के साथ कभी नहीं सोया ।रात भर मुझे पकड़ा रहा ।उसके मन में यही भाव रहा कि मै उसे उसकी मम्मी की तरह छोड़ कर तो नहीं चली जाऊंगी ? अब तो स्कूल जाने का सवाल ही नहीं था ।

वह एक माह मे क्ई बार पूछता रहा मम्मी कहाँ ? और सिसकता था ।बैठक में दीदी जीजाजी की फोटो लगी थी , उसे देखता था और मम्मी कहता था ।बार बार फोटो की तरफ ऊंगली उठा कर दिखाता और मम्मी कहता था ।शायद समय गुजरने के साथ यादें कम हो रही थी । अब विवक खेलते रहता था पर नजर मेरी तरफ रहती थी ।उसके मन में एक भय रहता था कि कहीं मै उसे छोड़ कर तो नहीं चली जाऊंगी ।मै उसे एक दिन सिनेमा भी लेकर गई थी ।समय निकल गया ।

दीदी आने वाली थी ।सुबह से हम लोग खुश थे । दीदी जीजाजी रिक्शे से घर आये ।जीजाजी आते ही विवेक को गोद में लेना चाहते थे पर वह नहीं गया ।मेरे पैर को पकड़ कर खड़ा था । दीदी ने भी बहुत बुलाया पर वह दीदी के पास भी नहीं गया ।पूरे दिन विवेक अपनी मम्मी और पापा को देखते रहा । मै उसे बार बार बोलती रही कि ये मम्मी है पर विवेक मुझसे चिपका रहा ।विवेक को दीदी की फोटो और दीदी को एक साथ दिखाये पर वह दोनों को देखता रहा पर गया नहीं ।

रात तक दीदी का चेहरा भी रोने जैसा हो गया ।रात को खाना खाकर फिर सभी इसी कोशिश में रहे कि विवेक दीदी के पास चला जाये पर सब कोशिश बेकार गई ।रात को सोने के बाद दीदी उसे अपने पास ले गई ।रात भर वह चैन से सोया रहा ।माँ के हाथो का एहसास उसे शायद पीछे ले गया ।वह सुबह उठा तो अपनी माँ की गोद में था मैं उसे बुलाई तो मेरे पास नहीं आया ।

अब माँ मिल गई थी ।पर इस एक माह में मैने विवेक को सम्हालते सम्हालते माँ की परेशानी को समझ गई थी ।दीदी भी बच्चे और पति के साथ पढ़ाई करने की तकलिफ को समझ रही थी ।माँ ने एक लम्बे अर्से के बाद बच्चे को सम्हाला था ।माँ ने एहसास किया कि बच्चे को छोड़कर पढ़ना नौकरी करना कितना पीड़ा दायक है ।

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