रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 64


आज अलसी के बीज खाने का चलन शुरु हो गया है ।उसके बहुत सारे गुण बताये जा रहे हैं। अलसी मुझे बहुत पसंद है । आज इसके गुणो को देख कर खाने के लिये कहा जा रहा है पर छत्तीसगढ़ में किसी न किसी रुप में इसका उपयोग किया जाता रहा है ।आधुनिकता ने इसे निगल लिया ।

मेरे गांव मे अलसी बहुत होती थी ।इसका तेल निकाला जाता था .उसकी खली को जानवर खाते थे और तेल हम लोग ।अलसी तेल बारहों मास रोटी के साथ खाया जाता था ।गेहूं के आटे की मोटी रोटी या बाटी बनाथे थे और उसे अलसी के तेल के साथ खाते थे ।छत्तीसगढ़ में चांवल की रोटी बनाई जाती है उसके साथ अलसी का तेल हो तो खाने का स्वाद बढ़ जाता है। चांवल की रोटी छत्तीसगढ़ के स्थापना दिवस राज्योंत्सव पर बहुत बिकती है ।इसे बनाने के लिये पका हुआ चांवल याने भात में चांवल का आटा और नमक डाल कर बिना पानी के गुंदते हैं ।फिर इसे थोड़ा मोटा बेलकर तवे पे डालते है ।अच्छे से सिक जाये तब उसे आग में भूरे होते तक सेंक ले ।उसके बाद इसे गरमागरम अलसी के तेल के साथ खायें ।शुद्ध घी या अलसी के तेल के साथ ही यह मोटी चांवल और गेहूं की रोटी खाई जाती है ।क्ई लोग तेल में लाल मिर्च भी डाल कर खाते है ।

यह मजा तो हम लोग लेते ही थे ।पर गांव मे गरमी के दिनों मे रहती थी तो बोरे में भरे अलसी को ऊंगली से छेद करके निकालती थी और खाते रहती थी ।मामी कहती थी बहुत गरम होता है ज्यादा मत खा पेट खराब हो जायेगा ।यह दस्तावर ( लेक्जेटिव ) होता है ।इसकारण इसे आज खाने के बाद खाने के लिये कहते है । जानवरों को भी पेट फूलने पर इसका तेल पिलाया जाता है ।

इस अलसी के और भी उपयोग होते थे । मेरी एक मामी अलसी का अचार बनाती थी यहाँ पर साबूत आम का अचार डालते हैं जिसे" अथान "कहते है ।आम के चार फांक करते हैं पर वह नीचे से जुड़ा रहता है ।इसके मसाले मे सरसों की जगह अलसी डालते हैं और बाकी सब मसाला वैसे ही डालते है ।हम लोगों को बहुत पसंद था ।मामी हमारे लिये भेजती थी ।

एक हमारी दीदी इसी प्रकार तिल का अचार बनाती थी ।आज भी मुझे यह अचार खाने को मिल जाता है ।मेरे बेटे के दोस्त के घर से आता है ।चखने मिल जाता है ।
इस अलसी ने एक और याद ताजा कर दी ।हमारे काका के घर पर बहुत अलसी होती थी ।गांव मे अनाज का भंडारण करते है ।बड़ी बड़ी कोठी होती है जिसमे धान गेहू लाखड़ी और तिलहन रखते है ।

मेरे काका जब बहूत छोटे थे तब गुड़ खाने के लिये बैठे रहते थे ।गांव में गुड़ को मिट्टी की काली हंडी में रखते थे ।हमारी बड़ी दादी के तब बच्चे नही थे । उन्हे यह पसंद नहीं था कि काकाऔर उनके भाई बहन खाने के अलावा कुछ खायें ।काका और उनके बड़े भाई गुड़ निकालने कमरे में गये ।दादी ने कोठी के नीचे रखे गुड़ को कोठी के उपर टांग दिया था ।बड़े भाई ने छोटे भाई को उपर चढ़ा दिया ।काका अपने को सम्हाल नहीं पाये और अलसी की कोठी में गिर पड़े ।अलसी चिकनी होती है ।काका फिसल कर नीचे जाने लगे पर अपनी बड़ी माँ के डर से चिल्ला नहीं रहे थे ।अपने आप से लड़ रहे थे। बड़े पिताजी को कुछ गड़बड़ लगा तो वे भी उपर चढ़ गये ।वे देख कर घबरा गये ।काका का गला ही उपर था बाकी सब नीचे धंस गया था ।।उपर मे एक बांस का टुकड़ा था उसे काका को पकड़ने के लिये बोल रहे थे तभी घर का नौकर आ गया ।

नौकर सब देख कर घबरा गया वह जोर से चिल्लाने लगा ।सब लोग आ गये ।दादी तो बहुत चिल्लाने लगी कि ये लोग सब कुछ खा जायेंगेहम लोग भिखारी हो जायेंगे मरने दो एक तो कम होगा ।मेरी दादी चुपचाप रो रही थी ।अचानक नौकर को कुछ सुझा ।उसने कोठी का मुंह खोल दिया ।दलहन तिलहन के लिये कोठी के नीचे एक मु़ंह बनाते है जिसे कपड़े से बंद करके रखते है ।उसका मुंह खुला और तेजी से अलसी फिसलते हुये तेजी से नीचे गिरने लगी ।बाद मे अलसी काका के कमर तक आया तो काका को उपर से खींच लिये ।काका का रो रो कर बुरा हाल था ।काका बताते थे कि बड़ी दादी "मर जाता मर जाता " बोलती ही जा रही थी । हमारी दादी ने उसे गोद मे उठा लिया ।दोनों रो रहे थे ।काका बताते थे कि घी की बखत छोड़ दो गुड़ भी खाने नहीं देती थी ।जब सब खाने बैठते थे तभी सब के साथ एक जैसा खाना मिल गया फिर नहीं ।बच्चों को कुछ देने का तो सोच ही नहीं सकती थी ।

इस अलसी ने कुछ खट्टी मिठी यादों को ताजा कर दिया ।पर लौट कर आ रही खान पान की संस्कृति को देख कर अच्छा लग रहा है ।ऐसा लगता है "लौट कर बुद्धु घर को आये । "सारी दुनिया की चीज़े खा लिये अब विज्ञान कह रहा है यह खाओ ।ओर हम याद कर रहे है कि "अरे यह तो अपने माँ के जमाने में खाया करते थे ।" लौट रहे है ब्राऊन राईस , रागी , कोदो ,कुटकी ,झुरगा और देशी चना की तरफ ।आज भाजियां को भी खाने मे रुचि दिखाई दे रही है ।अलसी को कभी मेरी तरह से खाकर देखें अच्छा लगेगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें