रविवार, 24 जनवरी 2016

ये दिन भी अपने थे - 74



बाइस नवम्बर को हम लोग सुबह 6.15 पर वी टी स्टेशन पर उतरे थे ।आठ बजे सीटी गेस्ट हाऊस पर एक कमरा लिये ।55 रुपये एक दिन के हिसाब से ।नहा धोकर वही चाय पीये और साढ़े नौ बजे हम लोग घूमने निकल गये ।

गेट वे आफ इंडिया और ताज इंटर कांटिनेंटल देखे ।हम लोग जिस समय पहुंचे उस समय अरब सागर मे बहुत तेज लहरें उठ रही थी ।हल्की बारीश भी हो रही थी।समुद्र का पानी छलक कर गेट वे इंडिया तक आ रहा था ।एक तरफ समुद्र और दूसरी तरफ नये पुराने ताज की खूबसूरती देखने लायक थी ।मैने अपने जीवन मे पहली बार समुद्र देखा था अथाह पानी , क्षितिज तक पानी ।

यहां से हम लोग चर्च गेट रेल्वे स्टेशन गये ।चर्नी रोड की टिकट लेकर लोकल ट्रेन का मजा लिये ।फिर चौपाटी देखे जहां पर रेतीला समुद्री किनारा था और दुकाने थी ।यहाँ पर कचनार के बहुत से पेड़ थे । यहां से तारापोर एक्वेरियम गये ।तब प्रवेश शुल्क पचास पैसा था ।देश विदेश की मछलियों का संग्रह था आक्टोपस ,ब्रिटल स्टार , स्टार फिश ,रे फिश , स्कालियोडान को मै लैब मे शिशियों मे बद देखी थी ।इसे जिवित चलते और खाते हुये देखना बहुत ही रोमांचक था ।

सबसे पहले सी एनीमोन देखे ।इसका रंग गुलाबी था ।बहुत संख्या में थे ।कांंच से अनगिनत सफेद रंग के तंतु दिखाई दे रहे थे।ये चौकोर मुंह पर से हिल रहे थे ।इधर उधर तैर रहे थे ।यह सब दृश्य अपने मन मे लेकर होटल लौट आये ।उस दिन अगहन गुरुवार का उपवास था तो रात को दूध डबल रोटी ही खाये और सो गये ।

दूसरे दिन तेईस नवम्बर था और मेरा जन्म दिन भी था ।उस दिन हम लोग विक्टोरिया गार्डन , जू ,हाजीअली की दलगाह देखने गये ।उस दरगाह के पीछे सागर तक गये वहाँ पानी मे खेलने के बाद ही मै वापस आई ।ऐसा लग रहा था कि बचपन लौट आया है ।यहां से महालक्ष्मी के मंदिर गये और उसके पीछे समुद्र से डुबते सूरज को देखे ।वहाँ से पैदल हैंगिग गार्डन , कमला नेहरु पार्क घूमें , यहां से पूरे मुम्बई की रौनक देखने लायक थी ।लाईट से जगमगाता शहर और खिलौने की तरह दौड़ती अनगिनत कारें फिल्म की तरह लग रही थी ।

चौबीस नवंबर को हम लोग संंग्रहालय देखने गये ।पेंटिंग , चीनीमिट्टी के पॉट ,जानवरों के संग्रह थे ।पतंगो के जीवन चक्र को चित्रों सहित रखा गया था ।पढ़ी हुई चीज़ो को इस तरह से देखना बहुत ही ज्ञानवर्धक लगा ।यहाँ से लोकल से सांताक्रुज रेल्वे स्टेशन गये फिर हवाईअड्डा देखने गये।वहाँ की टिकट चार रूपये थी ।हवाईजहाज को उड़ते और आते हुये भी देखे ।

वहाँ से नेहरु प्लेनेटोरियम गये और " आकाश और मौसम " हिंदी मे देखे। यहाँ की छत गोलाकार होती है ।इसी पर आकाश ,तारे , चंद्रमा ,नक्षत्र , दिखाते है ।मौसम के अनुसार इसके परिवर्तन को देखे साथ ही अंधेरी रात , प्रातःकाल , सांयकाल का भी आनंद लिये ।यहां से शाम को बस से जूहू आ गये और चौपाटी का मजा लिये ।रात को वापस आ गये ।

वापसी मे हमें बस नहीं मिली ।आठ बजे के बाद सीटी बस नहीं चलती थी यह हमें पता नहीं था ।एक व्यक्ति हमारी परेशानी देखकर बोला कि यह बस सीधे फ्लोरा फाऊंटेन छोड़ेगी वहीं इसका स्टापेज है ।हम लोग बिना सोचे बैठ गये थे ।पूरे बस मे हम दो लोग औक दो कंंडक्टर ही थे ।राते मे एक व्यक्ति और चढ़ा। उसे देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि यह ट्रेन वाला वही लड़का था जो मेरे से मेरे पति के न रहने पर बात करता था ।यहां पर वह बात करने की कोशिश कर रहा था जब पूजा तो मेरे पति ने उसे सब बता दिया ।हम लोग एक ही जगह उतर गये ।वहसपूछता रहा कहाँ रुके है पर हम लोग तेजी से निकल गये ।

दूसरे दिन पूरा सामान लेकर होटल छोड़ दिये ।सामान रेल्वे के क्लाक रुम मे रख कर गेट वे आफ इंडिया आ गये ।यहाँ से आठ आठ रुपये की टिकट लेकर लॉच में बैठकर एलीफेंंटा देखने गये । समुद्री मार्ग से छै किलोमीटर पर है । द्वीप पर उतर कर पैदल चलना पड़ा ।पचास पैसे की टिकट लेकर गुफा देखने गये ।यहाँ पर शिव पार्वती की मूर्तियां थी ।त्रिमुखी शिव और अर्धनारिश्वर की मूर्ति थी ।शिव पार्वती के विवाह की मूर्ति थी ।यह सब देखकर हम लोग ढाई बजे वी टी स्टेशन पहुँच गये ।बाहर एक मद्रासी होटल मे खाना खा कर स्टेशन पर ही बैठे रहे ।शाम साढ़े सात बजे की जनता एक्सप्रेस से हम लोग जबलपुर के लिये निकल गये ।

यह मेरी शादी के बाद की पहली लम्बी यात्रा थी ।मुम्बई जिसे फिल्मों के लिये जानते थे , जिसे देखना एक सपने की तरह था उसे देख कर महशूस करके भी सपना लग रहा था ।अब अपने सपने के झरने की ओर जा रही थी ।जिसे मैने चित्रों मे ही देखा था ।

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