मै होली के बाद
जब मायके से ससुराल आई तो मेरे भाई के साथ मेरी ननंद मुन्नी को शादी के लिये बोलने
लगे थे ।मेरी दीदी जीजाजी ने "हाँ ले लेंगे ऐसा कह दिया था ।"एक साल
गुजरने के बाद ऐसी घटना हो गई की सब कुछ खतम हो गया ।
मेरे ससुराल के
पीछे की तरफ मेरे पिताजी के मित्र दयाशंकर शुक्ला जी रहते थे ।उनका बेटा विजय
शुक्ला मेरे भाई के साथ छटवीं से सेंटपॉल स्कूल मे पढ़ा था ।वह अक्सर वहाँ आता था।
।कालेज से आने के बाद आता था तो रात होने के कारण रुकता नहीं था इस कारण मेरे घर
नहीं आता था।छुट्टी रहने पर चार पांच बजे आ जाता था। आने पर मेरी जेठानी ही उससे
जादा बात करती थी ।कभी कभी चाय बिस्कुट मेरी ननंद देती थी ।थोड़ा बहुत हंसी मजाक
चलते रहता था ।
मेरे ससुराल मे
गाने का शौक जेठ जी को छोड़ कर सभी को था ।मेरो ननंंद और जेठानी दिन भर शेरो शायरी
और और फिल्मी गाने गाते रहते थे पर बहुत धीमी आवाज मे ।हमारी सास फिल्म तो बहुत
देखती थी पर वह भजन गाती थी ।बढ़िया डोलक भी बजाती थी ।आरती गाती तो थाली बजाती थी
।मेरे डाक्टर देवर को भी बहुत गाने का शौक था।फिल्म और गाने इन सब की कमजोरी थी
।ये लोग किसी बात पर बहस कर रहे थे तो जेठानी ने मुन्नी से कहा कि तुम रवि का कालर
पकड़ सकती हो ? वह तुरंंत "
हाँ "बोल दी। यह बात हिम्मत को लेकर हो रही थी । मुन्नी अकेले कहीं नहीं जाती
थी असल मे उसे अकेले जाने नहीं देते थे ।दिखने मे गोरी और सुन्दर थी ।वह आठवीं तक
ही स्कूल मे पढ़ी थी ।उसके बाद की पढ़ाई बी ए तक प्राइवेट ही की थी ।रास्ते मे चलती
तो जेठानी का हाथ पकड़ कर चलती थी ।उसे हमेंशा लगता था कि लड़के उसको देखते है ।इस
बात को लेकर मेरा एक देवर क्ई लोगों को पीट चुका था। उर्दू बहुत अच्छा समझती थी और
बोलती भी थी ।मुसलमानों की अधिकता के कारण उसकी सहेलियां भी मुसलमान थी और वह अपनी
छठवीं से आठवीं तक की पढ़ाई भी उर्दू स्कूल मे की थी ।
इस शर्त के पीछे
उसे अपनी हिम्मत को दिखाना था।कॉलर पकड़ कर अपने को बोल्ड दिखाने का साहस था
।इत्तफाक से शनिवार के दिन मेरा भाई अपने एक दोस्त के साथ आया था। इनकी शर्त भाई
के कालर पकड़ने के बदले दो सिनेमा दिखाने का था ।मै तो सिर्फ़ कालर पकड़ने की बात ही
सुनी थी । वह चाय लेकर आ रही थी तो मैने उसे ऐसा करने के लिये मना किया पर वह
मुस्कुरा दी । चाय देने के बाद कप उठाने आई उसके पहले वह रवि का कॉलर पकड़ ली और
तुरंत छोड़ दी ।उसके बाद अंदर चली गई ।जेठानी बैठक के दरवाजे पर खड़ी हंस रही थी
।बार बार अंदर की ओर मुन्नी को देखती और बैठक मे भाई को देखती थी ।मै सहमी हुई खड़ी
थी ।भाई ने मुझसे पूछा ये क्या था ।मै बोली उसने तेरी कॉलर पकड़ी थी ।उसके बाद
जेठानी ने सारी बात बता दी ।
भाई झेंपते हुये
मुस्कराया ।उसका दोस्त बार बार रवि की ओर देख रहा था। थोड़ी देर मे वे लोग उठ कर
चले गये ।हमारे घर मे जेठानी और मुन्नी के बीच मजाक चलते रहा ।मुन्नी के चेहरे पर
जीत की खुशी थी ।जेठानी शर्त हार कर भी खुश थी कि उसने तीर मार लिया है ।रात को
मजाक चलता रहा ।मैने अपने पति को बताया तै वे बोले बहुत गलत हुआ है ।रवि और मुन्नी
की शादी की बात चल रही है ।मुन्नी को ऐसा नहीं करना था ।मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रहा
है ।
दूसरे दिन कालेज
मे भाई के और दोस्तों को यह बात पता चली ।लोग भाई का मजाक बना रहे थे कि जो लड़की
दो सिनेमा के लिये तेरा कॉलर पकड़ सकती है उसे कोई भी सिनेमा दिखा कर कही भी ले जा
सकता है। वहीं पर रवि से उसके दोस्तों ने कहा कि तू उस लड़की से शादी मत कर ।भाई भी
तैयार हो गया कि उसे अब मुन्नी से शादी नहीं करनी है ।
मै जब मायके गई
तो भाई ने साफ कह दिया कि उसे मुन्नी से शादी नहीं करनी है ।ससुराल वाले तो अकेला
बेटा और इंजीनियर देख कर लार टपका रहे थे ।खेती भी अच्छी थी ।सम्बन्ध अब बिगड़ने
लगा था ।हमारे घर से कोई भी पहल नहीं हुआ ।ये लोग गये पर पिताजी चुप रहे ।मैने सास
को बताया कि कॉलर वाली घटना के बाद रवि शादी नहीं करना चाहता है ।
एक दिन सब लोग
मुझसे लड़ने लगे कि जाकर अपने भाई से बोलो कि मुन्नी से शादी करे।मुन्नी भी बहुत
मुंह खोल रही थी ।उसने कहा कि ये तो मजाक था ।इतनी सी बात के लिये धोखा दे रहे है
।धोखेबाज है ।शादी करेंगे बोले है तो करना चाहिये ।झगड़ा हो रहा था उसी समय मेरे
पति भी आ गये ।बस सब उनको बोलने लगे कि तुम जाकर बोलो कि हमारी लड़की से शादी करे
।वे तो चुप ही रहे।सब निपट कर खाने बैठ गये ।बहुत देर हो गई थी ।मेरे से कोई बात
नहीं किये पर उम्मीद की एक किरण मेरे से ही नजर आ रही थी ।
सब अपने अपने
कमरे मे चले गये ।दो तीन दिन मे सब सामान्य हो गया ।हमारे घर के सामने कुत्ते के
पिल्ले थे मुन्नी ने उसका नाम रवि रख दिया .घर के मुर्गे को रवि घर बछड़े को रवि
नाम दे दिया था ।हर तरफ रवि ।अब मेरे और उसके बीच दूरी शुरु हो गई थी ।इस लड़ाई के
चलते मेरा एक एबार्शन हो गया। डाक्टर देवर के आने पर बहुत लड़ाई हुई ।इसमे मुन्नी
ने कहा" जाकर रवि से कहो कि मुझसे शादी करे ।"डाक्टर ने भी कहा "ये
तो मजाक था ,असल मे उनकी नियत
ही नहीं थी शादी करने की ।अपनी लड़की दिये हैं तो हमारी बहन को भी ले।"
इस झगड़े और तनाव
के कारण मेरा एबार्शन हो गया ।उस समय डाक्टर कमल वर्मा को दिखाये थे ।डाक्टर ही
लेकर गया था ।वह डाक्टर वर्मा हमारी परिचित थी वह मेरे मायके के रहन सहन को जानती
थी ।उसने कहा कि "इसको खाना खिलाते हो कि नहीं ।तुम डाक्टर हो तुमको पता होना
चाहिये कि यह कमजोर है और किसी तनाव की वजह से यह हुआ है ।इतनी पढ़ी लिखी है इसका
ध्यान रखा करो ।दवाई देती हूँ रुकना होगा तो रुकेगा आगे ईश्वर की ईच्छा ।एक डाक्टर
के घर मे ऐसा होना ठीक नहीं है ।"
हम लोग वापस आ
गये ।सब इस बात से दुखी तो थे पर मेरी जेठानी को कोई फर्क नहीं पड़ा ।डाक्टर बी सी
गुप्ता जो मेरे पेट दर्द का ईलाज कर रहे थे वे भी कहते थे कि खाने का ध्यान रखो
।पर खाने का हाल तो बहुत खराब था। मुझे शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाने मे बहुत
मेहनत करनी पड़ी पर मन का क्या वह तो मष्तिस्क पर प्रभाव डालता ही है ।
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